शीर्षासन
'शीर्ष' अर्थात 'सिर' या 'मस्तिष्क' l इस योगासन को करते समय पूरा शरीर सिर के आधार पर टिकाना और स्थिर रखना होता है, तो संभव है कि यही कारण है इस आसन का नामकरण शीर्षासन होने का / वैसे इस आसन को आसनों के रजा का पद भी दिया गया है तो ये भी एक वजह है इसके नामकरण की / शीर्षासन को 'कपाली आसन' 'वृक्षासन' और 'विपरीत करणी' भी कहा जाता है /
आईये बताते हैं इसे कैसे किया जाता है....
दो या चार बार तह किया हुआ कम्बल या चादर ज़मीन पर बिछा दीजिये / ध्यान रहे की अन्य योगासनों को करने में किसी भी चटाई या योगा mat की एक तह ही काफी होती है मगर शीर्षासन क्योकि सिर के बल किया जाता है तो हमें प्रयत्न करना है की कपाल यानि की skull की हड्डियों और मासपेशियों को कम से कम तनाव या क्षति पहुचे / वैसे भी योगासन करने का पहला नियम मेरे अनुसार तो यही है की किसी भी आसन को तभी तक किया जाना उचित है जब तक की सुविधा से या सहजता से वह हो जाए / जहाँ से या जिस स्थिति के पश्चात् अनुचित तनाव या दर्द महसूस होने लगे, उस स्थिति को फ़िलहाल के लिए आखिरी बिंदु मान लीजिये और उस के आगे आगले दिन ही जाईये /
हाँ तो हम इस आसन को करने के तरीके का आगे विस्तार करते हैं / तह किया हुआ कम्बल या चादर बिछाने के बाद अब दोनों घुटनों के बल बैठ जाएँ / दोनों हथेलियों की उँगलियों को परस्पर फसाकर उन्हें ज़मीन पर रखिये /
अब सिर को हथेलियों के बीच ज़मीन पर टिका दीजिये / ध्यान रहे की सिर का उपरी हिस्सा ज़मीन पर लगना चाहिए /
(check back tommorow for more)
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